श्रीमद् भागवत गीता सुख सागर पहला अध्याय
- Get link
- Other Apps
श्री वृन्दावन विहारिणे नमः
। 1 अथ नवीन सुक्खसागर !
अर्थात् * ( श्री मद्भागवत माहात्म्य ) * हिन्दी भाषानुवाद
* पहला अध्याय *
हे प्रभु माखनचोर, ब्रजवनितन के मनहरन | चितवौ मेरी ओर, व.रूं महातमको तिलक || नटवर मदन गोपाल, अरु राधावाधा हरन | इत्यिसकल जंजाल, मोहिभरोसो आपको || मन्द मन्द मुसकात, वतरावत गावव हँसत । लूट लूट दषिखात, नेक शंक मानत नहीं || हे ब्रजेश विश्वेश, मम दिशि हेरड कृपाकरि । काटहु कठिन कलेश, तुझी सहायक निवलके || वरणों तिलक ललाम, शुक सागर माहात्म्यको | सुनत होय विश्राम, भक्तजननके हृदय में ॥ असुरनिकन्दन सुखकरन सुमिरि नन्दकोलाल | लिखतमहातन भागवत मिश्र कन्हैयालाल।।
पहिला अध्याय |
॥ जिस संपूर्ण जगत् की माया ममताको छोड़कर जाते हुए के पीछे पीछे महाराज श्रीव्यासदेवजी 'हेपुत्र' २! इस भाँति लगातार पुकारतेहुये चलेजारहेथे, जिसको तन्मयहोकर पेड भी कहतेथे, उन सव प्राणियों के हृदय में स्थित मुनिश्रेष्ठ को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ १ ॥ किसी दिन नैमिषारण्य क्षेत्र में शौनकादिक अठासीहजार मुनि भागवत कथा रूपी मृत स्वाद के रसिकोंने सूतजीको नमस्कार करके ॥ २ ॥ शौनकजी कहनेलगे | हे सृतजी | आप हमारे ऊपर दया करके समस्त अज्ञान व अन्धकार नाशक करोड़ सूर्य की समान प्रकाश मान् श्रवणानन्द दायक रसायन रूप कथाओं का सार वर्णन कीजिये ॥ ३ ॥ यह भी बताइये कि भक्ति-ज्ञान तथा वैराग्य किस प्रकारसे मिलता है ? और ज्ञानकी वृद्धि कैसे होती है? एवं महात्मा जन मायामोह को किस भाँति छोडते हैं ? ॥ ४ ॥ इस महादारुण कलिकालके उपस्थित होनेपर जगत् के प्राणियों का चित्त असुर संज्ञाको प्राप्त होगयाहै उस क्लेशसे युक्त प्राणियों का उद्धार करने के निमित्त कौनसा कर्म करना उचित है ? ॥ ५ ॥ अतएव जो कुशल का कुशल पवित्र का पवित्र, और सम्यक तथा भगवद्भक्ति उत्पादक साधन होवे आप हमारे प्रति उसी का वर्णन कीजिये ॥ ६॥ चिन्तामणि संसारिक सुख - इन्द्रासन - स्वर्गतक का पद प्रदान करता है और गुरूदेव सन्तुष्ट ( प्रसन्न ) होकर योग भक्ति तथा अत्यन्त दुर्लभ वैकुण्ठ की गति प्रदान करताहै ॥ ७ ॥ सूतजीने कहा । हे शौनकादि ब्राह्मणों ! जोकि आपलोगों के हृदय में बहुत अधिक प्रमहै, इस वास्ते में पूरा विचार करके सर्व सिद्धान्त का सिद्धान्त संसारिक भयकानाश करने वाला, आनन्द का प्रकाश ||८|| भक्तिको वढाने वाला भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र आनन्द कन्द के संतोष का कारण आपलोगोंके निकट कहता हूं । आप एकाग्र चित्त होकर सुनिये ॥ ९ ॥ काल रूपी सर्पके मुखमें पडेहुए मनुष्यकी रक्षा करने वाला तथा उसके त्रासका नाश करने वाला जो
- Get link
- Other Apps
Comments
Please write more posts
ReplyDelete