॥श्रीगणेशाय नमः ॥
|॥ नवीन सुक्खसागर ॥
- ै ॥॥ अर्थात् ॥ ॥
-॥ ॥ श्रीमदभागवत हिन्हीं भाषा ॥ ॥-
|प्रथम स्कंध |
मगला चरण
दो०-जय यदुपति जथ श्याम घन, जय बुन्दावन ईश । चरण श्ण मोडि राखिय, जय जय जय जगदीश ॥
जग मेंगल दायक सदा, भक्तन जीवन प्रण । कृपा करहु निज भक्क पर, श्रीं अनन्त भगवाন ।
अजर अमर अव्यक्त ्रभु, खुणनिधि रूप अरू। महिपा को वरनन के, जो सव ऑॉँति अनूप ॥
सबजानतमडियाअधिक, कहि नहिं कोउ सिगय । तदपि यथा मति क्दि सन, खुमिरह्ि यादवराय
मोर सुकुटकी लटक मैं, अटकी सब्र वृज वाल । कृपा करु्रुजन जोन निज, नटवर मदन खुयाल ।
सेवक अपनो जान कर, कृपा करहुध नैंदलाल । वार वार विनवत यही, मिश्र कन्हैया लाल ॥
मेरी भब वाधषा हरो, रथा नोगरि सोय । जा ततु की झई परे, श्याम हर्ति पुति होय।
नंद नन्दन विनवत यही, वार वार शिर नाय । मिश्र कन्हैया लाल को,. सुरति विसरि जनिजाय ॥
॥ अध्याय १ ॥
(ऋ्षियोंका सुतजीमे प्रश्न और नासयणके अबतार वर्णन)
जोइस संसार को उत्पन्न पालनऔर संहार कियाकरतेहैं.
जिनकी सत्तासदसत सारेपदारथमें प्रकाशितहोतीहै. जोसर्ब
जहैँ? औरजिनकेद्वारा ब्रहमाजीके ह्ृदयमेंवेदोंकाप्रकासहुआ
है. सूर्यकीकिरणोंमें जलकेश्रमकी समानजलमें काचभ्रमकीस
मानजिनकीपरमसत्तामें अवस्थितमायामय तीनोंजगतस्च्चे
मालुमहोतेहैं हमउनमायासेपरेअपने प्रभावरसेसर्वकालप्रकाश