1. सामान्य जानकारी
- भारत उत्तरी गोलार्द्ध में 8°4' - 37°6' उत्तरी अक्षांश और 68°7' – 97°25′ पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है।
• सम्पूर्ण भारत का अक्षांशीय विस्तार 6° 4' – 37°6' उत्तरी अक्षांश के मध्य है । भारत का क्षेत्रफल 32 लाख 87 हजार 263 वर्ग किमी है ।
क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत विश्व का 7 सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है । क्षेत्रफल के दृष्टि से भारत से बड़े छः देश है—रूस, कनाडा, चीन, सं. रा. अमेरिका, ब्राजील एवं आस्ट्रेलिया । (8वाँ बड़ा देश अर्जेण्टीना)
भारत का क्षेत्रफल सम्पूर्ण विश्व के क्षेत्रफल का 2-42% है, जबकि इसकी जनसंख्या सम्पूर्ण
विश्व की जनसंख्या का 16.7% है । ( 2001 ई० की जनगणना के अनुसार) जनसंख्या की दृष्टि से विश्व के 8 बड़े देश हैं— चीन, भारत, सं० रा० अमेरिका, इण्डोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं रूस ।
भारत का उत्तर से दक्षिण में विस्तार 3,214 किमी है व पूरब से पश्चिम में विस्तार 2,933 किमी है। भारत की स्थल-सीमा की लम्बाई 15, 200 किमी है। इसके तटीय भाग की लम्बाई 7516-5 किमी है; परन्तु मुख्य भूमि के तटीय भाग की लम्बाई 6100 किमी है।
भारत की स्थल सीमा पर बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, भूटान और अफगानिस्तान हैं, जिसके साथ भारत की सीमा की लम्बाई क्रमशः 4,096 किमी, 3917 किमी, 3310 किमी, 1752 किमी, 1458 किमी, 587 किमी एवं 80 किमी है।
भारत की जलीय सीमा 5 देशों से मिलती है- पाकिस्तान, मालद्वीव, श्रीलंका, बांग्लादेश एवं म्यांमार ।
भारत की जल एवं स्थल सीमा से लगे देश - बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान ।
भारत का सबसे दक्षिणी बिन्दु इन्दिरा प्वाइन्ट है। यह निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। पहले इसका नाम पिगंमिलयन प्वाइन्ट था । यह भूमध्य रेखा से 876 किमी दूर है। भारत के सबसे उत्तरी बिन्दु इन्दिरा-कॉल जम्मू-कश्मीर राज्य में है। पश्चिमी बिन्दु सरक्रीक (गुजरात) एवं पूर्वी बिंदु वालांगूं ( अरूणाचल प्रदेश) में है।
कोलाबा प्वाइन्ट मुम्बई में, प्वाइन्ट कालीमेरे तमिलनाडु में एवं प्वाइन्ट पेड्रो जाफना (श्रीलंका के उत्तर पूर्व) में है ।
भारत एवं चीन की सीमा को मैकमहोन रेखा कहते हैं । यह रेखा 1914 ई० में शिमला में निर्धारित की गयी थी । इसकी उत्तरी-पूर्वी सीमा की लम्बाई लगभग 4224 किमी है।
भारत और अफगानिस्तान के बीच डुरण्ड रेखा है, जो 1896 में सर डुरण्ड द्वारा निर्धारित की गई थी। अब यह रेखा अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान के बीच है ।
भारत एवं पाकिस्तान के बीच रेडक्लिफ रेखा है, जो 15 अगस्त 1947 ई० को सर एम० रेडक्लिफ के द्वारा निर्धारित की गई थी ।
। भारत एवं चीन की सीमा को मैकमहोन रेखा कहते हैं । यह रेखा 1914 ई० में शिमला में निर्धारित की गयी थी । इसकी उत्तरी-पूर्वी सीमा की लम्बाई लगभग 4224 किमी है। भारत और अफगानिस्तान के बीच डुरण्ड रेखा है, जो 1896 में सर डुरण्ड द्वारा निर्धारित की गई थी। अब यह रेखा अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान के बीच है । भारत एवं पाकिस्तान के बीच रेडक्लिफ रेखा है, जो 15 अगस्त 1947 ई० को सर एम० रेडक्लिफ के द्वारा निर्धारित की गई थी।
जलवायु: किसी क्षेत्र में लंम्बे समय तक जो मौसम की स्थिति होती है, उसे उस स्थान की जलवायु कहते हैं। भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु है।
मौसम किसी स्थान पर थोड़े समय की, जैसे एक दिन या एक सप्ताह की वायुमंडलीय अवस्थाओं को वहाँ का मौसम कहते है ।
भारत में मौसम संबंधी सेवा सन् 1875 ई० में आरंभ की गई थी; तब इसका मुख्यालय शिमला में था । प्रथम विश्व युद्ध के बाद इसका मुख्यालय पुणे लाया गया। अब भारत के मौसम संबंधी मानचित्र वहीं से प्रकाशित होते हैं ।
> भारतीय जलवायु को मानसून के अलावे प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारक हैंहैं— (i) उत्तर में हिमालय पर्वत : इस की उपस्थिति के कारण मध्य एशिया से आने वाली शीतल हवाएँ भारत में नहीं आ पाती हैं ।
(ii) दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी उपस्थिति एवं भूमध्य रेखा की समीपता के कारण उष्णकटिबंधीय जलवायु अपने आदर्श स्वरूप में पायी जाती है । है
मानसूनी पवनों द्वारा समय-समय पर अपनी दिशा पूर्णतया बदल लेने के कारण भारत में निम्न चार ऋतु चक्रवत पायी जाती है—
(i) शीत ऋतु ( 15 दिस० से 15 मार्च तक )
(ii) ग्रीष्म ऋतु ( 16 मार्च से 15 जून तक)
iii) वर्षा ऋतु (16 जूनसे 15 सितम्बर)
(iv) शरद ऋतु ( 16 सितम्बर से 14 दिस० )
नोट : ये तिथियाँ एक सामान्य सीमा रेखा को तय करती हैं, मानसून पवनों के आगमन एवं प्रत्यावर्त्तन में होने वाला विलंब इनको पर्याप्त रूप से प्रभावित करता है।
> उ० भारत के मैदानी भागों में शीत ऋतु में वर्षा प० विक्षोभ या जेट स्ट्रीम के कारण होती है।
> जाड़े के दिनों में (जनवरी फरवरी महीने में) तमिलनाडु के तटों पर वर्षा लौटती हुई मानसून या उत्तरी पूर्वी मानसून के कारण होती है ।
> ग्रीष्म ऋतु में असम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में तीव्र आर्द्र हवाएँ चलने लगती हैं, जिनसे गरज के साथ वर्षा हो जाती है। इन हवाओं को पूर्वी भारत में नारवेस्टर एवं बंगाल में काल वैशाखी के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक में इसे चेरी ब्लास्म कहा जाता है, जो कॉफी की कृषि के लिए लाभदायक होता है। आम की फसल के लिए लाभदायक होने के कारण इसे दक्षिण भारत में आम्र वर्षा (Mango Shower) कहते हैं ।
उत्तर-पश्चिम भारत के शुष्क भागों में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं को 'लू' (Loo) कहा जाता है।
वर्षा ऋतु में उत्तर-पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान में उष्णदाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसे मानसून गर्त कहते हैं । इसी समय उत्तरी अंत: उष्ण अभिसरण (NITC) उत्तर की ओर खिसकने लगती है, जिसके कारण विषुवत् रेखीय पछुआ पवन एवं दक्षिणी गोलार्द्ध की दक्षिण पूर्वी वाणिज्यिक पवन विषुवत रेखा को पार कर फेरेल के नियम का अनुसरण करते हुए भारत में प्रवाहित होने लगती है, जिसे दक्षिण पश्चिम मानसून के नाम से जाना जाता है। भारत की अधिकांश वर्षा (लगभग 80% ) इसी मानसून से होती है ।
भारत की प्रायद्वीपीय आकृति के कारण दक्षिण-पश्चिम के मानसून दो शाखाओं में विभाजितहो जाता है—(i) अरब सागर की शाखा तथा (ii) बंगाल की खाड़ी की शाखा ।
अरब सागर शाखा का मानसून सबसे पहले भारत के केरल राज्य में जून के प्रथम सप्ताह में आता है। यहाँ यह पश्चिमी घाट पर्वत से टकरा कर केरल के तटों पर वर्षा करती है। इसे मानसून प्रस्फोट (Monsoon brust) कहा जाता है ।
गारो,खांसी एवं जयंतिया पहाड़ियों पर बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाएँ (द० - प० मानसून की शाखा) अधिक वर्षा लाती है, जिसके कारण यहाँ स्थित मावसिनराम (मेघालय) विश्व में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान है। (लगभग 1,141 cm )
मानसून की अरब सागर शाखा तुलनात्मक रूप से अधिक शक्तिशाली होती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा लाये कुल आर्द्रता का 65% भाग अरब सागर से एवं 35% भाग बंगाल की खाड़ी से आता है।
अरब सागरीय मानसून की एक शाखा सिन्ध नदी के डेल्टा क्षेत्र से आगे बढ़कर राजस्थान के मरुस्थल से होती हुई सीधे हिमालय पर्वत से जा टकराती है एवं वहाँ धर्मशाला के निकट अधिक वर्षा कराती है। राजस्थान में इसके मार्ग में अवरोध न होने के कारण वर्षा का अभाव पाया जाता है, क्योंकि अरावली पर्वतमाला इनके समानांन्तर पड़ती है। तमिलनाडु पश्चिमी घाट के पर्वत वृष्टि छाया क्षेत्र में पड़ता है। अतः यहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा काफी कम वर्षा होती है।
> शरद ऋतु को मानसून प्रत्यावर्तन का काल (Retreating Monsoon Season) कहा जाता है। इस ऋतु में बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति होती है | इन चक्रवातों से पूर्वी तटीय क्षेत्रों में मुख्यतः आन्ध्र प्रदेश एवं उड़ीसा तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्र में गुजरात में काफी क्षति पहुँचती है ।
मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा कहा जाता है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारत के मिट्टी को आठ वर्गों में विभाजित किया है जो निम्न है —
जलोढ़ मिट्टी
काली मिट्टी
लाल मिट्टी
लेटराइट मिट्टी
मरुस्थलीय मिट्टी
क्षारीय मिट्टी
पिटमय और जैव मिट्टी
वनीय मिट्टी
1.जलोढ़ मिट्टी
यह मिट्टी भारत के लगभग 22 % प्रतिशत क्षेत्रफल पर पाई जाती है।
यह नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी है। इस मिट्टी में पोटाश की बहूलता होती है लेकिन नाइट्रोजन ,फास्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है।
यह दो प्रकार की होती है—1.खादर 2.बांगर
पुराने जलोढ़ मिट्टी को बांगर तथा नई जलोढ़ मिट्टी को खादर कहा जाता है।
जलोढ़ मिट्टी में उर्वरता के दृष्टिकोण से काफी अच्छी मानी जाती है इसमें धान ,गेहूं ,मक्का ,तिलहन ,दलहन, आलू आदि फसलें उगाई जाती है।
2.काली मिट्टी
इसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों को टूटने फूटने से होता है। इसमें आयरन, चुना ,एल्युमिनियम एवं मैग्नीशियम की बहुलता होती है। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनी फेरस, मैग्नेटाइट एवं जीवांश की उपस्थिति के कारण होता है।
इस मिट्टी को रेंगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
कपास की खेती के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त होती है।
अतः इसे काली के पास की मिट्टी भी कहा जाता है। अन्य फसलों में गेहूं ,ज्वार, बाजरा आदि को उगाया जाता है।
भारत में काली मिट्टी गुजरात ,महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र, उड़ीसा के दक्षिणी क्षेत्र ,कर्नाटक के उत्तरी जिला, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी एवं समुद्र तटीय क्षेत्र, तमिलनाडु के सलेम, रामनाथपुरम ,कोयंबटूर तथा तिरुनलवेली जिलों में राजस्थान के बूंदी एवं टोंक जिलों में पाई जाती है।
3. लाल मिट्टी (Red soil)
इसका निर्माण जलवायविक परिवर्तनों के परिणामस्वसखूप रवेदार एवं कायान्तरित शैलों के
विघटन एवं वियोजन से होता है। इस मिट्टी में सिलिका एवं आयरन की बहुलता होती है।
लाल मिट्टी का लाल रंग लौह ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है, लेकिन जलयोजित
रूप में यह पीली दिखाई पड़ती है।
यह अम्लीय प्रकृति की मिट्टी होती है। इसमें नाइट्रोजन, फॉरस्फोरस एवं ह्यूमस की कमी
होती है। यह मिट्टी प्रायः उर्वरता-विहीन बंजरभूमि के रूप में पायी जाती है।
इस मिट्टी में कपास, गेहूँ, दालें तथा मोटे अनाजों की कृषि की जाती है ।
भारत में यह मिट्टी आन्ध्र प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के पूर्वीभाग, छोटानागपूर के पठारी क्षेत्र,
प० बंगाल के उत्तरी-पश्चिमी जिलों, मेघालय की गारो, खासी एवं जयन्तिया के पहाड़ी
क्षेत्रों, नगालैंड, राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र, महाराष्ट्र, तमिलनाइ एवं कर्नाटक के
कुछ भागों में पायी जाती है ।
चुना का इस्तेमाल कर लाल मिट्टी की उर्वरता बढ़ायी जा सकती है।
4. लेटेराइट मिट्टी (Laterite soil)
इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आद्ता एवं शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वसूप
उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है। इसमें आयरन एवं सिलिका की बहुलता होती है।
शैलों के दूट फूट से निर्मित होने वाली इस मिट्टी को गहरी लाल लेटेराइट, सफेद कैटेरइट
तथा भूमिगत जलवायी लैटराइट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
गहरी लाल लैटेराइट में लौह ऑक्साइड तथा पोटाश की बहुलता होती है। इसकी उव्रता
कम होती है, लेकिन निचले भाग में कुछ खेती की जाती है।
सफेद लेटेराइट की उर्वरकता सबसे कम होती है और केओलिन के कारण इसका रंग सफेद
होता है। भूमिगत जलवायी लैटेराइट काफी उपजाऊ होती है, क्योंकि वर्षाकाल में लौह
ऑक्साइड जल के साथ घुलकर नीचे चले जाते हैं।
ललेटेराइट मिट्टी चाय की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है।
Q.भारत में कितने प्रकार की मिट्टी पाई जाती?
Ans भारत के मिट्टी को आठ वर्गों में विभाजित किया है जो निम्न है —
जलोढ़ मिट्टी
काली मिट्टी
लाल मिट्टी
लेटराइट मिट्टी
मरुस्थलीय मिट्टी
क्षारीय मिट्टी
पिटमय और जैव मिट्टी
वनीय मिट्टी
. भारत की कृषि...
भारत के कुल क्षेत्रफल का लव्भग 51% भाग पर कृषि, 4% भू-भाग पर चरागाह, लगभग
21% भूमि पर वन् एवं 24% भूमि बंजर तथा बिना उपयोग की है।
देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 52% भाग कृषि एवं इससे संबंधित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका चलाता है। 2009-10 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान14.6% है।
> 2008-09 में भारत के निर्यात में कृषि और उससे संबंधित वस्तुओं का अनुपात लगभग 9.1% था।
विश्व में चावल उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। भारत में खद्यान्नो के अन्तर्गत आने वाले कुल क्षेत्र के 47% भाग पर चावल की खेती की जाती है।
विश्व में गेहूँ उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है । देश की कुछ कृषि योग्यभूमि के लगभग 15% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है।
देश में गेहूँ के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है, जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन में पजाब का स्थान प्रथम है।
> हरित क्रांति का सबसे अधिक प्रभाव गेहूँ और चावल की कृषि पर पड़ा है, परन्तु चावलकी तुलना में गेहूँ के उत्पादन में अधिक वृत्धि हई।
> भारत में हरित क्रांति (Gree revolution) लाने का श्रेय डॉ० एम० एस० स्वामीनाथन को जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1967-6৪ ई० में हुई।
प्रथम हरित क्रांति के बाद 1983-84 ई০ में द्वितीय हरित क्राति की शुरुआत हुई, जिसमें अधिक अनाज उत्पादन, निवेश एवं कृषकों की दी जाने वाली सेवाओं का विस्तार हआ।
> तिखहन प्रीदोगिकी मिशन की स्थापना 1986 ई० में हुई।
भारत विश्व में उर्वरकों का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है।
पोटाशियम उर्वरक का पूरी तरह आयात किया जाता है।
आम, केला, चीकृ, खट्टे नींबू, काजू, नारियल, काली मिर्च, अदरक, हल्दी के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में पहला है।
फलों एवं सब्ज़ियों के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में दूसरा है। (प्रथम- चीन)
ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
1. रबी की फसल : यह अक्टूबर-नवम्बर में बोयी जाती है और मार्च-अप्रैल में काट ली जाती है। इसकी मुख्य फसलें हैं— गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, आलू, राई आदि ।
2. खरीफ फसल : यह जून-जुलाई में बोयी जाती है, और नवम्बर- सितम्बर में काट ली जाती है । इसकी मुख्य फसलें हैं— धान, गन्ना, तिलहन, ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर आदि ।
3. गरमा फसल : यह मई-जून में बोयी जाती है और जुलाई-अगस्त में काट ली जाती है । इसकी मुख्य फसलें हैं— राई, मक्का, ज्वार, जूट और मडुआ ।
भारत में सिंचाई
भारत में सिंचाई परियोजनाओं को तीन भागों में विभाजित किया गया है। ये हैं—
1. वृहत् सिंचाई परियोजना 2. मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ एवं 3. लघु सिंचाई परियोजना
वृहत् सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत वे परियोजानाएँ सम्मिलित की जाती है, जिसके अन्तर्गत 10,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि हो ।
मध्यम सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत वे परियोजनाएँ सम्मिलित की जाती है, जिसके अन्तर्गत 2,000 से 10,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि हो ।
लघु सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत वे परियोजना सम्मिलित की जाती है, जिसके अन्तर्गत 2,000 हेक्टेयर से कम कृषि योग्य भमि हो ।
वर्तमान समय में भारत की कुल सिंचित क्षेत्र का 37% बड़ी एवं मध्यम सिंचाई परियोजना के अधीन तथा 63 %छोटी सिंचाई योजनाओं के अधीन है।
विश्व का सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र चीन ( 21%) में है।
विश्व का दूसरा सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र भारत 20.2% में है।
भारत में शुद्ध बोय गए क्षेत्र 1360 लाख हेक्टेयर के लगभग 33% भाग पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है।
वर्तमान समय कुआं और नलकूप भारत में सिंचाई का प्रमुख साधन है।
देश में सर्वाधिक नलकूप हुआ पंप सेट तमिलनाडु 18 प्रतिशत में पाए जाते हैं महाराष्ट्र 15.6% का दूसरा स्थान है केवल नलकूपों की सर्वाधिक सघनता वाला राज्य उत्तर प्रदेश है।
प्रायद्वीपीय भारत में सिंचाई का प्रमुख साधन तालाब है तालाब द्वारा सर्वाधिक सिंचाई तमिलनाडु राज्यों में की जाती है।
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